पिता का होना
पिता का होना
रहते हैं
जब तक पिता
बना रहता है बचपन
बड़े होने के बाद भी,
चिन्ताएँ
रहती हैं कोसों दूर
मन सोचता हैं
पिता हैं
तो सब देख लेंगे
सारे दुखों/ चिन्ताओं से
कर लेंगे दो-दो हाथ,
जब होती है दुविधा
जीवन में कभी
बन जाते हैं तुरन्त मार्गदर्शक,
अनुभवों की पोटली
जो होती है उनकी गाढ़ी कमाई
खोलते हैं फट से
जब दिसम्बर की कड़ी सर्दियों में
उनकी रजाई में
घेर कर बैठ जाते हैं सब बच्चे
सुनने को मनोयोग से,
ज्ञान के
अथाह भंडार होते हैं पिता
अपने बच्चों के लिए ही नहीं
नाती-पोतों के लिए भी
बन जाते हैं एनसाइक्लोपीडिया,
नहीं सताता
कभी भी अकेलापन
उनके होते हुए,
बचपन/किशोरावस्था
यौवन की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए
नहीं होता कभी भय
थामे रहते हैं
प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष हाथ,
पिता का होना
बरकत है जीवन की
चाबी है खुशियों की,
बस एक ही प्रश्न
मथता रहता है अनवरत
जानते हैं पिता
कितने जरूरी हैं वे बच्चों के लिए
जानते हुए भी
क्यों चले जाते हैं छोड़ कर उन्हें
ईश्वर के पास?
#डॉभारतीवर्माबौड़ाई