पिता का सार, खड़ा है जिस पर संसार
जिसके बीज ने दिया है इस धरा पर मेरे अस्तित्व को पूर्ण आकार
ऐसे पिता के ऋण से भी मुक्त नहीं हो सकता स्वयं श्रवण कुमार
मां के गर्भ ने निभाया है मुझ पर यह प्रत्यक्ष परम पुण्य अमर्त्य आभार
पिता प्रकृति द्वारा प्रदत्त है परमेश्वर का पवित्र पुनित पुरस्कार
पिता होता है पत्नी,पुत्र, पुत्री, परिवार और परिजन का पतित पावन पालनहार
जिनके समक्ष कदाचित ही नहीं खड़ी हो सकती है संसार की शक्ति अपार
पिता का कोई विकल्प नहीं, सब अल्प है सब है पिता बिना निराधार
जिसकी वेदना शून्य है जिसको दिखता है लाभान्वित मात्र अपना परिवार
पिता की उपस्थिति में मानव करता है अपने स्वर्णिम सपनों को साकार
जिसने पंख दिए हैं हौसलों की उड़ान के जिससे डरता है खुद अंधकार
पिता प्रेरणा पुंज है, प्रकाश पिंड है प्रगति प्रणेता है, है पुरूषार्थ की पुकार
परित्याग की प्रतिमूर्ति है, पथ-प्रदर्शक है वही है इस जीवन के कर्णधार
जिसने अपने कंधों पर उठाया है सकल उत्तरदायित्व का अनंत भार
जिसे परिचय की आवश्यकता नहीं जिसका पराक्रम यहां भरता है हुंकार
मां यदि साक्षात ईश्वर है तो पिता नि: संदेह परमपिता का है असीम अवतार
मैं पिता के समक्ष नतमस्तक हूं ऋणी हूं मेरा कण-कण है उनका कर्जदार
पिता के प्रबल प्रताप से प्रकाशित है सदा ही मेरा सम्पूर्ण संसार
“आदित्य”की कलम कभी लिख ही नहीं सकती है शब्दों में पिता का परोपकार
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर छ.ग.