पिता का प्यार
ढूंढ रही हूं पापा अपने।
जाने कहां गुम हो गए।।। मेरी आवाज़ सुनने की खातिर जो दौड़े चले आते थे।।।
तरस गई हूं सुनने को अब उनकी आवाज़।।। अब न कोई फोन न कोई चिट्ठी।।।
जाने कहां सुन हो गए हैं।।। मैं तकती रहती हूं रास्ता।।।
वो रास्ता कहीं खो गया हैं।।
दुनियादारी ने लगता हैं उनका मन मोह लिया है।।। ऐ दिल जाकर कह दे उनको ।।
मैं उनकी वहीं बेटी हूं।।। लाड लडाते थे जिसको वो ।।
नाज उठाते थे मेरे वो ।।। जिसमें उनकी जान थी बसती।।।
उस जान को कैसे भूल गए हैं।। अब भी मन करता हैं मेरा ।।।
भाग कर उनके पास चली जाऊं।।।
मुनकिन नहीं होता हैं ये।।
उनका प्यार कैसे मैं पाऊं।।।
ढूंढ रही हूं पापा अपने।।
कृति भाटिया।।