“पिता का जीवन”
“पिता का जीवन”
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कर्तव्य-पथ से,अडिग होते वो यदा-कदा;
संघर्षशील रहते, अपने जीवन में सर्वदा।
संकट भी होती है अगर,उनके चारों ओर;
फिर भी उनका मन नाचे, जैसे वन-मोर।
बचपन में शरारत सदा, हरेक बच्चे करते;
बड़े होकर भी,जो करे पिता का अपमान।
उसके जीवन में सदा घिर जाए हर संकट,
मिलता न,उसको जीवन में कभी सम्मान।
बच्चों के भविष्य का,उनको होता संज्ञान;
चाहे पिता , मुरख हो या हो उसको ज्ञान।
नित उठ करो सब,अपने पिता को प्रणाम;
तब सफल होंगे, सारे सरल-कठिन काम।
यों ही कट जाती, पिता की सारी जिंदगी,
पूरा करते-करते, अपनों की हरेक बंदगी।
फिर भी होती उनकी, सिर्फ एक ही चाह;
हर बच्चें उनके, जीवन में चलें अच्छे राह।
पल-पल सदा ही, सोचते रहते वो बेचारा;
बच्चे बड़े होकर बनें, सदा उनका सहारा।
जीवन में उनका,हर कर्म हो जाए आसान;
अगर मिलता रहे उनको, सदा ही सम्मान।
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स्वरचित सह मौलिक;
©®✍️पंकज ‘कर्ण’
…..कटिहार(बिहार)।
तिथि:१६/६/२०२२