*पिता का जब तक पाया साया :(गीत)*
पिता का जब तक पाया साया :(गीत)
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तब तक थे बेफिक्र, पिता का जब तक पाया साया
(1)
बचपन से यौवन, फिर चाहे हम अधेड़ हो जाते
मुखिया की जिम्मेदारी तुम ही थे पिता उठाते
दोपहरी में थे तुम जैसे घने वृक्ष की छाया
(2)
जीवन की पथरीली राहों पर चलना सिखलाते
धूप-छॉंव है जीवन का मतलब हम को बतलाते
घर-बाहर का सब हिसाब कर गुणा-भाग समझाया
(3)
धन्य-धन्य हे पिता तुम्हारे जीवन की अभिलाषा
गढ़ा हमें दे सभ्य सुशोभित देवलोक की भाषा
तुमने कर्मयोग से हममें अपना चित्र बनाया
तब तक थे बेफिक्र पिता का जब तक पाया साया
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997 6 15 451