पिता का गीत
गीत
मत पूछो किस तरह जिया हूं ।
कदम-कदम पर गरल पिया हूं
इस दीपक के दस दीवाने
सबकी चाहत ओ’ उलाहने
जर्जर काया, पास न माया
कैसे कह दे धूप न साया
घर कहता है नई कहानी
बूढ़ी आंखें, सुता सयानी
मत पूछो किस तरह जिया हूं
कदम-कदम पर गरल पिया हूं
मेरे राज़ हवा ही जाने
मेरे काज दवा पहचाने
नापी धरती, देखे सपने
उखड़ी सांसें, रूठे अपने
अब पैरों पर जगत खड़ा है
देखो तो, बीमार पड़ा है
मत पूछो किस तरह जिया हूं
कदम-कदम पर गरल पिया हूं
गंगा मेरे तट पर आई
देख मुझे, रोई बलखाई
बोली-बोली हे ! गंगाधर
उलझे-उलझे क्यों ये अक्षर
मुझसे ले तू छीन रवानी
जीवन तो है बहता पानी
मत पूछो किस तरह जिया हूं।
कदम-कदम पर गरल पिया हूं।।
सूर्यकांत द्विवेदी