पिताजी का राजदूत-मोह
पिताजी को अपनी राजदूत ( मोटर साइकिल ) से बड़ा मोह था ,
बड़े शौक से वो उसे चलाते थे ,
समय बीता राजदूत भी पुरानी
हो गयी
और पिताजी भी पहले से ढल गए ,
अब राजदूत घर के एक कोने
का इक हिस्सा हो गयी ,
अब हम बच्चे राजदूत को देख देख
कुढ़ने लगे ,
फिर घर में चलते – फिरते अक्सर
हम लोग पिताजी से राजदूत को
बेचने का आग्रह करने लगे ,
लेकिन पिताजी नहीं माने
फिर हम बच्चे पिताजी पे दबाव बनाने लगे
की पिताजी राजदूत बहुत पुरानी हो गयी
अब आप उसको बेच दें ,
पिताजी उठे खीजे
और खीज के बोले
क्या किसी की बीवी पुरानी हो जाती है
तो क्या उसको भी कोई ………………..
इस प्रकार पिताजी ने राजदूत की तुलना बीवी से कर डाली ,
फिर हम लोगों ने पिताजी के मनोभावों को समझा
उनकी पहली मोटरसाइकिल के प्रति लगाव को समझा
और फिर कभी राजदूत को बेचने को
हम में से किसी ने नहीं कहा |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’