“पिता” (एक सच्चाई)*****
“पिता” (एक सच्चाई)***
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पिता हर-घर की शान-बान है,
हर बच्चे की वही पहचान है।
हर पिता भी तो, एक पुत्र है;
वो परिवार का जीवन-सूत्र है।
मां होती अगर ममता की मूरत,
पिता होते हर क्षमता की सूरत।
पिता में रखें, हमेशा अपनी निष्ठा,
बची रहेगी सदा, आपकी प्रतिष्ठा।
बच्चे सदा करते, इनपर पूरा भरोसा,
पिता करते हर गलत पर गुस्सा हमेशा।
फिर भी रहते वो सदा अपनों के करीब,
चाहे उनकी हैसियत हो अमीर या गरीब।
दुख सहकर भी दुख नहीं देते अपनों को,
पूरा करते सदा परिवार के हर सपनों को।
खुद रहते भी अगर हमेशा फटेहाल,
चाहते घर-परिवार रहे सदा खुशहाल।
कष्ट झेल वो, जो दो-चार पैसे कमाते;
परिवार उसे पूरी मौजमस्ती में उड़ाते।
सामर्थ्य से ज्यादा सदा वो करते चिंता,
फिर भी उनमें नहीं होती, कोई हीनता।
दुर्भाग्यवश जिन बच्चों के मां ना होती,
सदा मां बनकर अपना कर्तव्य निभाते वो।
हर संकट, तूफानों में, घर के सारे कामों में,
बच्चों के लिए हर कदम, ममता झलकाते वो।
घर सहित समाज को भी रखते सदा साथ,
समाज के कामों में भी बटाते अपना हाथ।
देश दुनिया की भी उनको होती सदा फिक्र,
भले न करें वो इन बातों का कहीं भी जिक्र।
मानव-कर्म निभाना वो खूब जानते,
हर नीति,धर्म और संस्कार को मानते।
पूरा करते, अपनों के हर सपने को;
जिसे वो अपने मन में जरूर ठानते।
कर्तव्य-पथ से,अडिग होते वो यदा-कदा,
संघर्षशील रहते अपने जीवन में सर्वदा।
संकट भी होती अगर, उनके चारों ओर,
फिर भी उनका मन नाचे, जैसे वन-मोर।
कुछ बच्चे तो फिर भी बच्चे होते,
बड़े होकर जो करे पिता का अपमान।
उसके जीवन में घिर जाए हर संकट,
मिले न, उसे जीवन में कभी सम्मान।
बच्चों के भविष्य का उनको होता संज्ञान,
चाहे पिता मुरख हो या हो उसको ज्ञान।
नित उठ करो सब अपने पिता को प्रणाम,
तब सफल होंगे सारे सरल कठिन काम।
यों ही कट जाती उनकी सारी जिंदगी,
पूरा करते करते अपनों की हर बंदगी।
फिर होती उनकी सिर्फ एक ही चाह,
बड़े होकर बच्चें उनके चलें अच्छे राह।
बुढ़ापे में तो हर बार सोचते वो बेचारा,
बच्चे बड़े होकर बनें, सदा उनका सहारा।
जीते जी उनका हो जाता, हर काम आसान,
अगर मिलता रहे उनको, पत्नी से सम्मान।
बच्चों के जो भी होते, अपने पिता,
पत्नी को भी होते वो सबसे प्यारा।
अपने माता-पिता के वे होते नयनतारा,
पिता मिले न, कभी जीवन में दुबारा।
स्वरचित सह मौलिक
……..✍️पंकज “कर्ण”
……………कटिहार।।