#पितरों की आशीष
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★ #पितरों की आशीष ★
अयोनिज व मानसिक सृष्टिरचना के उपरांत ब्रह्मा जी ने अपने ही शरीर से दो रचनाएं कीं। उनमें से एक मनु जी महाराज व दूजी शतरूपा कहलाईं। हम उन्हीं की संतान होने के कारण मनुज अथवा मनुष्य कहलाते हैं। यह ही हमारे पितर अर्थात पूर्वज हैं।
इनके पूर्व हुए कुछ ऋषि भी पितर माने गए हैं। और, स्वर्गवासी हो चुके हमारे मातापिता, दादादादी आदि हमारे निकटतम पितर हैं।
यदि आयु में हमसे छोटा हमारा कोई निकटसंबंधी हमसे पहले ही गोलोक लौट गया है तो वो भी हमारे पितरों की श्रेणी में जा पहुंचा है।
हमारे अच्छे-बुरे कर्मों के चलते पितर हमसे प्रसन्न भी हो सकते हैं व रुष्ट भी हो सकते हैं।
पितरों को प्रसन्न करने के लिए उनके समाधिस्थल पर धूपदीपादि जलाना भी उनके रोष को शांत कर सकता है। परंतु, दीर्घकाल तक पितरों की आशीष पाने के लिए कुछ अन्य उपाय भी सहायक हो सकते हैं।
यथा, १. किसी सार्वजनिक स्थान पर त्रिवेणी (बरगद, पीपल व नीम) की स्थापना करवाएं।
कोई भी पेड़ लगाने का भाव यह रहता है कि जब तक वो पेड़ अपनी जड़ न जमा ले तब तक उसकी सेवा व सुरक्षा करना।
२. यदि ऐसा संभव न हो तो पहले से लगे हुए पीपल, बरगद व नीम को ब्रह्ममुहूर्त में जल द्वारा सींचें। यदि आप विवाहित हैं तो पत्नी सहित यह कार्य करना चाहिए।
त्रिवेणीपूजन की यह अवधि न्यूनतम तीन ऋतु होनी चाहिए। तीन ऋतु अर्थात छह मास की अवधि।
३. प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चौदस तिथि को सायंकाल पीपल के नीचे दो दीपक जलाएं। दीपक मिट्टी अथवा आटे के हों। तेल तिल अथवा सरसों का हो अथवा गाय का घी हो।
दीपक के समीप ही दो लड्डू अथवा दो बताशे भी रख छोड़ें।
४. प्रतिदिन मीठे जल का सूर्य को अर्घ्य दें।
सूर्योदय के उपरांत एक घंटे के भीतर, तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें एक चुटकी शक्कर अथवा गुड़ डाल लें। और, लोटे को मस्तक से ऊपर ले जाएं। गिरते हुए जल के बीच से सूर्य को देखें। पितरों का स्मरण करें। अपनी भूलचूक के लिए उनसे क्षमाप्रार्थना करें। पितरों से आशीष मांगें। इस समय आप अपने उन पूर्वजों की छवि का स्मरण करें जिन्हें आपने देख रखा है।
५. एक वर्ष व एक महीना अर्थात तेरह महीने तक घर में जो भी फल लाएं उनकी गुठली सहेज लें। दो-तीन महीने में जितनी गुठलियां हो जाएं उन्हें मिट्टी की गोलियां बनाकर उनमें एक-एक गुठली रख छोड़ें। इन गोलियों के सूखने के उपरांत अपने घर से दूर, यदि संभव हो तो नगर-गांव से बाहर जाते हुए रास्ते के किनारे अथवा रेल की पटरी के किनारे यह गोलियां बिखेर दें।
६. तिल, चावल का टुकड़ा व शक्कर समान मात्रा में ले लें। तीनों को मिलाकर उस मिश्रण में थोड़ा सरसों का तेल अथवा गाय का घी मिला लें। एक खोपा नारियल लेकर उसके ऊपर से थोड़ा (टोपी के आकार का) टुकड़ा काट लें। अब उसमेंं यह मिश्रण भरकर ऊपर से उतारी गई टोपी उसके ऊपर रख दें। जहाँ चींटियों का घर हो वहाँ इतना-सा गढ्ढा खोदकर उसमेंं इसे धर दें कि भूमि के समतल हो जाए। जो शेष मिश्रण बचा है उसे आसपास बिखेर दें।
माँ शतरूपा व आदिपुरुष मनु जी महाराज का स्मरण किया करें।
#हरि ओ३म् !
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#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२
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