पितरों का तर्पण”
पितरों का तर्पण
याद करते हो पितरों को,
बहुत अच्छी बात है।
अन्न जल से तर्पण करते हो,
अच्छी बात है।।
ख्याल रखते हो ऐसे ही,
तो क्या बात है क्या बात है।
बूढ़ा जीवन संवारते हो,
तो क्या बात है क्या बात है।।
लेकिन पर किंतु परंतु!
जीते जी पानी नहीं पिलाया,
बाद मरने खीर पुरी खिलाते हो।
तुम्हारा बुढ़ापा अच्छा होगा,
क्यों इस भ्रम में जीते हो।।
बुढ़ापे का अपमान किया,
भला बुरा उन्हें कहते हो।
बाद मरने के उनके,
कौवौं को कावं कावं कर बुलाते हो।।
कहे पा”रस” पूर्वज बनाया कौऔ को तो आशीर्वाद कहां से पाएगा,
जीते जी कर लो सेवा जीवन सफल हो जाएगा।।