पिटूनिया
बालकनी में
पिटूनिया के
खिलते फूल
घर की
आंतरिक ऊर्जा से
मुस्कुराते हैं
खिलखिलाते हैं हृदय से
उदास भी होते हैं
रोते भी हैं
दुःख से सूखने लगते हैं
जब घर में
माँ नहीं होती
उसे भी पहचान है
माँ की
उसके निश्छल
नेह की,स्नेह की
जिसमें कृत्रिमता की
कोई गुंजाइश नहीं है
घर में वास करनेवाली
दूसरी कोई भी स्त्री
उसकी
माँ नहीं हो सकती
उस पिटूनिया का सुख
सिर्फ गृहलक्ष्मी है
जिसका घर में होना ही
उसके लिए
सुख की
सुखद परिभाषा है।
-अनिल कुमार मिश्र