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यह वह समय था जब टीवी पर प्रसारित किये जा रहे रामानंद सागर और बी आर चोपड़ा निर्देशित धारावाहिक रामायण और महाभारत ने लोगों की जीवन शैली को अच्छी तरह से प्रभावित किया था। उस समय टीवी की उपलब्धता गिने चुने हुए लोगों के पास ही थी। जिनके पास जैसी सुविधा थी उसका प्रयोग कर निश्चित रूप से रामायण और महाभारत को देखने का अन्तिम दम तक प्रयास करते थे। मैं जिस समय कॉलेज की पढ़ाई के क्रम में काॅलेज के पास ही लाॅज में रह रहा था, उस समय टीवी पर महाभारत धारावाहिक का प्रसारण हो रहा था। वहाॅं रहने वाले सभी विद्यार्थी लॉज मालिक के यहाॅं रविवार को महाभारत देखते थे। लाॅज मालिक का छोटा भाई थोड़ा गर्म दिमाग का था और अपने को ज्यादा होशियार समझता था। वह कभी-कभी रविवार को महाभारत शुरू होने से ठीक पहले अंदर जाने वाली गेट को बंद कर देता और हमलोगों को सुनाकर बोलता आज महाभारत नहीं चलेगा। जबकि अंदर से टीवी चलने की आवाज बाहर तक सुनाई पड़ती थी। उस समय तो हम सभी का मन करता था कि उसे जी भर के गाली दें और भरपूर गाली देते भी थे।
मेरे गाॅंव में कपड़ा दुकान चलाने वाले हनीफ चाचा एक चौदह इंच का ब्लैक एंड व्हाइट टीवी खरीद कर लाए और रविवार को पंचायत भवन में टीवी पर लोगों से एक रुपया लेकर महाभारत दिखलाने लगे। इस धंधे में लाभ देखकर बाद में टीवी से भी सी आर जोड़कर वीडियो हाॅल चलाना शुरु कर दिए, जिससे बड़े पर्दे पर ना सही,टीवी के छोटे पर्दे पर ही गाॅंव में ही लोगो को नई फिल्में देखने को मिल जाती थी। माॅं के बहुत जोर देने पर महाभारत धारावाहिक देखने के लिए बाबूजी भी एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी खरीद कर लाए। गाॅंव में बिजली नहीं थी। नया टीवी को देखने परिवार के सभी सदस्यों के साथ अगल-बगल वाले भी वहाॅं उत्साहित मुद्रा में उपस्थित थे। टीवी चलाने के लिए ट्रैक्टर से बैटरी निकाल कर लाया गया। बैटरी को टीवी में जोड़ा गया, लेकिन टीवी नहीं चला। तब वहाॅं लोगों ने तरह-तरह का मंतव्य देना शुरू कर दिया। किसी ने कहा कि हो सकता है कि दुकानदार ने खराब टीवी दे दिया हो,तो किसी ने कहा टीवी चलाने का कोई दूसरा नियम तो नहीं है ? बाद में पता चला कि बहुत दिनों से बंद पड़े ट्रैक्टर की बैटरी चार्ज ही नहीं थी। खासकर, हम बच्चे उस समय हनीफ चाचा की काफी इज्जत करते थे, क्योंकि वीडियो हाल में घुसने में कभी रोक-टोक नहीं करे और जब जरूरत हो, तब भाड़ा लेकर ही सही,पर घर के टीवी के लिए बैटरी दे। रविवार को एकदम सुबह में ही मेरे घर के बरामदे पर टेबुल लगाकर उस पर टीवी रख दिया जाता था। माॅं टीवी के आगे में दो-तीन अगरबत्ती जला देती थी और आगे में लोगों को बैठने के लिए चटाई बिछा देती थी। महाभारत शुरू होते ही पूरा बरामदा लोगों से खचाखच भर जाता था। टीवी का पर्दा झर झर नहीं करे और पर्दे पर तस्वीर एकदम झकाझक साफ हो, इसके लिए अपने को एक्सपर्ट समझने वाला एक आदमी एंटीना वाले बॉंस को पकड़ कर खड़ा रहता था और जब जरूरत होती,तब सिग्नल पकड़ाने के लिए ध्यान से बाॅंस को इधर उधर घुमाता। एंटीना घुमाने के इसी चक्कर में टीवी देखने में बाधा होने पर लोगों की खूब खरी खोटी भी सुनता।