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2 Oct 2019 · 1 min read

पिंजरे पत्थर के

प्यासे परेशान पंछी ,हौसलों के पंख लिए,
नहीं आसमां के आशियाने पहचानते !
आंधी, बरसात, शीत,उष्णता ,की मार झेल
,सपनों की दुनिया में अपने तलाशते !!
पत्थरों के शहर है ,पत्थरों के आदमी भी
, पत्थरों के जंगलों में पेड़ है तलाशते !
पेड़ तो मिले नहीं है पिंजरे मिले है उन्हें
पिंजरों में सतरंगी सपने तलाशते !!
सतरंगी सपनों में अपनों का रूप लिए
,बैठे है बधिक यूँ शिकार की तलाश में !
सतरंगी सपनों के जाल है बिच्छाय बैठे
,ढूंढते है जीवन को पंछियों की आस में !!
खुद को बना के जिन्दा लाश बन घूमते है
,बंध के बहेलियों के बहुरंगी पाश में !
पार पिंजरे की दुनिया को पहचाने बिना
, पिंजर बने है इन पिंजरों के पाश में !!
पिंजरों की दुनिया को जान लिया जिसने भी
,जाके पार इसके भी उसने दिखाया है
अपनी उड़ानमें आजादी का अहसास लिए
, पत्थर के पिंजरों को तोड़ के दिखाया है
बधिक,बहेलियों और सेकड़ों शिकारियों को,
हौंसलों से अपने यूँ आइना दिखाया है
पहुंचा के सरकारी सींखचों में इनको भी
, पिंजरों में कैसा होता हाल यूँ दिखाया है

Language: Hindi
1 Like · 296 Views
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