पास न आएगी बीमारी, रोज टहलने से।
~~~ गीतिका~~~
पास न आएगी बीमारी, रोज टहलने से।
बिस्तर अपना छोड़ दो पहले, सूर्य निकलने से।
सेहत का सब राज छुपा है, गांठ पार लो तुम,
कभी नहीं कतराना भाई, पैदल चलने से।
कोशिश कर के देखो पहले, हार नहीं मानों,
घोर अंँधेरा छँट जाता है, दीपक जलने से।
जन्मजात होते हैं सब में, गुण अवगुण दोनो,
फितरत कहाँ बदल पाती है, वस्त्र बदलने से।
प्यार जिसे होता वह जानें, दिल की मजबूरी,
जुगनू कभी न घबराता है, लौ में जलने से।
कड़वाहट सब दूर करो तुम, दिल में मत राखो,
होता है परिणाम बुरा जी, नफरत पलने से।
रिश्तों में अपनापन आता, दूरी मिट जाती,
लोभ मोह सह द्वेष जलन का ,बर्फ पिघलने से।
जीवन में ठोकर लगना भी, शुभ होता है जी,
‘सूर्य’ संभलना आ जाता कई, बार फिसलने से।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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