पास आना तो बहाना था
•. पास तो आना-जाना था”
मन की बन तू शायरी
मन से लिखता हूँ डायरी
खास बनकर खामोश मन के पास तेरा तो आना-जाना था।
कलम मेरी खुश हो गयी चलन पर चलकर रुष्ट हो गयी।
क्योकि खास बनकर तेरा आना था ।
उस मन के पास तो तेरा बस जाना था।
खामोश मन ख्यालों में छिपकर अरदास करती है _!
तेरे मेरे सवालो का बन मसला बरदास करती है ll
क्योकि खास बनकर तेरा तो आना था।
चित्त-चोर मन के पास मुझे बस तो जाना था ।
चाहकर पर भी मैं तुमसे दूर ना रह पाऊंगा ।
ख्यालो को अपने मन से ना कह पाऊंगा. ।।
क्योकि खास बनकर तेरा तो आना था
खामोशी से लिख दू मसला यह तो बहाना था।
हंसी तेरी मेरे मन में इस प्रकार समायी है।
मुझ निर्लज की बरसो की साकार कमायी है।
क्योकि खास बनकर तेरा तो आना था
खामोशी से लिख दू मसला यह तो बहाना था।
भुलु कैसे मैं वो लम्हे जिसमे तेरी यादे हैं।
बेकरार है मन मेरा जिसमे साथ निभाने के वादे हैं।
खास बनकर तेरा मेरे पास आना बहाना था
गुल मिल जाऊ तुमसे तुमसे यह खामोशी का बहानाथा।
आवाज तेरी मधुर कोयल सी इस मन मे समा जाती है ।
आगाज तेरा मधुर पायल की झनकार इस मन को छु जाती है।
मेरे जीवन मे आना खास बनकर तेरा रहना तो
बहाना था।
गुल-मिलकर खामोशी से चला जाना भी तेरा तो
बहाना था।
खत्म हुआ पल वो विरह के मिलन का सन्ताप अधुरा था।
समय का फेर-बदल चला चलन का मन मे पश्चाताप अधुरा था।
मेरे जीवन मे आना खास बनकर तेरा रहना तो बहाना
था।
गुल-मिलकर खामोशी से चला जाना भी तेरा तो
बहाना था।