पास आकर मुझे अब लगालो गले ,
पास आकर मुझे अब लगालो गले ,
क्यों खड़े दूर तुम बैर पाले हुए
तेरा दर छोड़ कर अब न जाऊं कही,
भागते दौड़ते पग में छाले हुए
रोती हंसती बिलखती मचलती है वो,
जब भी कान्हा बजाते मधुर बांसुरी
प्राण दो है मगर एक ही जान है,
जैसे चंदा सितारे धरा माधुरी
रास लीला रचाते हुए श्याम संग,
शिव बने गोपियां पग संभाले हुए
प्रेम के तार से जब जुड़ी गोपियां ,
गोपिका बल्लभव श्याम ग्वाले हुए
“