पास आएगा कभी
** गीतिका **
~~
आस है वो मुस्कुराता पास आएगा कभी।
याद बीते वक्त की ताज़ा कराएगा कभी।
भूलकर नादानियां सारी पुरानी एक दिन।
स्नेह से आवाज देकर फिर बुलाएगा कभी।
देखकर आती बहारें फूल मनभावन खिले।
स्वप्न आंखों में मधुर फिर से सजाएगा कभी।
ठोकरों में खो गई थी चाहतें मन की मधुर।
सुप्त मन की भावनाओं को जगाएगा कभी।
भूल सब स्वीकार कर लेगा सभी के सामने।
तब सहज हर एक को वह खूब भाएगा कभी।
क्यों भला हर हाल में वह मस्त रहता है सदा।
ठान लेगा मुश्किलें हल कर दिखाएगा कभी।
दूरियां उसने बनाई क्यों हमारे बीच में।
है मगर विश्वास भी पलकें बिछाएगा कभी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मंण्डी (हिमाचल प्रदेश)