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4 Feb 2021 · 1 min read

*पाषाण दिल*

बीहड़ कटीली राह में तुम ढूँढ़ते हो क्‍या,
पत्थर दिल भी कभी पसीजते हैं क्‍या !
लाख करो कोशिश सिर पटकने की तुम,
बेईमान कानों में भी जूँ रेंगती है क्‍या!!

रेवड़ियाँ चीन्ह-चीन्ह बाँट रहे अंधे,
फैलाने दुनिया में उद्योग और धंधे,
जमीं का अपनी सौदा होने न देना तुम
दे दुःख अपनों को सुखी रहते हो क्‍या!!

दिन-रात मोम से तुम जलते रहो मगर,
पहाड़ खोदकर है निकलती नई डगर!
पक्की डगर तुम्हारी सच्चे हो वीर तुम,
डटे रहो तुम देश-भक्त सोचते हो क्‍या!!

मज़हबी झगड़े हैं मज़लूम परेशान,
अन्नदाता त्राहि-त्राहि करे हिन्दुस्तान!
बाँटो न नोंच-नोंच खाओ यूँ ना तुम,
माँ को परेशान ‘मयंक’ करते हो क्‍या !!

के.आर.परमाल मयंक

1 Like · 5 Comments · 314 Views
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