पावन खिंड
सुनो! भारत के तरुणो, आज एक रोचक कथा बतलाता हूँ
जो हुए स्वराज के अमर वीर, उनकी शौर्य गाथा सुनाता हूँ
सह्याद्रि की पहाड़ियों में, जन्मा हिन्दू स्वराज
अंधकार में दर्प जला एक, नाम छत्रपति शिवाजी महाराज
राजे की फ़ौज ने दिखा वीरता, कितने शत्रुओ को ढेर किया
पर एक दिन राजे को दुश्मन ने, पन्हाळा पे घेर लिया
दुश्मन की फ़ौज थी बड़ी अपार, किले को घेरे बैठी थी
है फंसे शिवाजी अंदर, इस घमंड में अपने ऐंठी थी
पन्हाळा की दीवारों में एक नीति बनी, सारे बांदल तैयार हुए
दुश्मन की आँख में धूल झोंक, राजे सेना संग बहार हुए
सेना पहुंची घोडखिंड, तब राजे को आभास हुआ
दुश्मन पहुंचा बहोत करीब, इसका सबको एहसास हुआ
चिंतन छिड़ा अब क्या हो? अब कैसे बचके निकल सब पाए?
सहसा कोई बोला, ‘मैं और बांदल रोकेंगे इनको, राजे आप आगे जाए’
था बड़ा वीर उम्र में वह, पर लगाता जान की बाज़ी था
राजे ने मुड़के देखा, वहाँ खड़ा उनका बाजी था
भोर में जन्मा मर्द मराठा, वह स्वराज का सैनिक था
हर योजना और सम्मलेन में, वह रहता प्रस्तुत दैनिक था
राजे बोले,’ नहीं बाजी! मैं अपने खातिर, अपनों की बलि नहीं चढ़ा सकता
और तुम सबको पीछे छोड़, मैं आगे कदम नहीं बढ़ा सकता’
बाजी बोले, ‘हे राजे! आप पूजनीय है, स्वराज के दाता है
आप रहे तो स्वराज रहेगा, आप हम सभी के विधाता है
इस धरा पे पाप था छाया, तब आपने कालिख धुलवाई है
और स्वतंत्र जीवन जीने की, एक नयी उम्मीद जगाई है
आगे बढिये राजे, मेरे बांदल और मैं रुकते है
आशीष दीजिये अपना, हम सब वीर नमन में झुकते है’
ये वचन कह बाजी ने, राजे को अंतिम प्रणाम किया
और राजे ने भारी दिल से, आगे को प्रस्थान किया
कुछ ही देर में पहोचे दुश्मन, राजे को धरना चाहते थे
पर बांदलो की एक ढाल थी आड़े, वह आगे बढ़ न पाते थे
भिड़ गए तीन सौ बांदल फिर, राजे का सबने नाम लिया
सदा रहे वह याद में सबके, ऐसा उनने काम किया
युद्ध हुआ भीषण बहोत, और शवों से पटने लगी धरा
दुश्मन पे दुश्मन आते, पर बांदलो का मनोबल नहीं गिरा
और युद्धभूमि में बाजी प्रभु ने, कुछ ऐसा प्रलय मचाया
कोहराम मचा सब कायरो में,कोई सामने टिक न पाया
रुका नहीं वह वीर एक क्षण, दुष्टो पे वार वह करता गया
चोटे बहोत सी आयी उसे, पर निरंतर प्रहार वह करता गया
जाने कितना लड़े वीर, वह बिलकुल भी थके नहीं
गिरे कई उनमे से रण में, जो खड़े तनिक भी झुके नहीं
अंतिम स्वास तक लड़े वीर, उनका उद्देश्य भी सफल हुआ
सुरक्षित विशालगढ़ पहुंचे राजे, दुश्मनो का दल विफल हुआ
स्वराज के लिए उन वीरो ने, जिस धरा पर रक्त बहाया
वह पवित्र स्थल आगे चलके, ‘पावन खिंड’ कहलाया
ये कथा थी उन वीरो की, जो मैं तुमको सुनाता हूँ
उनकी वीरता को नमन कर, मैं अपना शीश झुकाता हूँ