पावन अपने गांव की
पावन अपने गांव हैं, रखें प्रदूषण दूर।
सीमित साधन हों भले,प्राण वायु भरपूर।।
बरगद पीपल नीम अरु,हरे भरे सब वृक्ष।
प्राण वायु देते सुखद,जग हित का यह पक्ष।।
उत्तम औषधि साफ जल,मिले गांव भरपूर।
रहे अगर हम गांव में, रोग रहें बहु दूर।।
शैली अनुपम गांव की,रक्षित सब संस्कार।
सच्चे भारत वर्ष का,दिखता सारा सार।।
पश्च सभ्यता देख कर, तजते जो जन गांव।
एक आध को छोड़कर,बाकी पाते घाव।।
शोभा अपने गांव की, देवि प्रकृति उपहार।
मानव समझे सार जो,मधुरिम हो व्यवहार।।
सीमित साधन गांव के,सीमित रखते अर्थ।
सत्य प्रेम दिखता यहां,त्याग भाव कटु व्यर्थ।।
अतिशय साधन पा शहर,बढ़ा प्रदूषण जाल।
नवल रोग नित बढ़ रहे, असमय आता काल।।
भौतिक साधन लोभ में,गलत पंथ में ओम।
दूषित यह जग हो रहा,जल थल अरु व्योम।।
कड़वा है पर सत्य यह,करो सभी स्वीकार।
हरित प्रकृति की छांव है,जीवन का आधार।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम