पालतू
बात तो करो मुझसे, कुछ तो कहो मुझसे,
क्यों बैठे हो उदास, लगा रखी थी क्या तुमने कोई आस?
जो हुई ना पूरी, जो तुम हुए निराश,
टुकुर टुकुर यूँ रहे निहार, क्यों ना आये तुम पर प्यार,
लोगों की नज़रों में तुम केवल जानवर भर हो,
पर मेरे लिए तो तुम हो निश्छल, निर्मल,
सुबह जब जाती हूँ घर से,छोड़ने आते तुम द्वार,
तुम्हारी आँखों की उदासी कहती बार बार,
मैं अकेला नहीं रहूंगा, पालतू होने का दंश नहीं सहूंगा,
मनुष्य से कहीं अधिक समझ तुम दिखलाते,
जरा से मनुहार पर मान जाते,
चुपचाप बैठ जाते एक कोने में,और निहारते,
जानती हूँ एकाकीपन तुम सह ना पाते,
इसीलिए मेरे आते ही मुझ पर छलांग लगाते,
होते आतुर छोटे बच्चे की तरह,
जो अपनी कामकाजी माँ से,
सुबह ही बिछड़ जाते, पर माँ के आते ही,
खिल जाते , उससे दूर नहीं रह पाते,
जानवर नहीं महज तुम,तुम भी हो परिवार हमारा,
तुम बिन हम भी कँहा रह पाते,कँहा रह पाते…….