Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Aug 2024 · 4 min read

पारले-जी

पारले-जी

” कइसन पेपर भयल आपके ” उस युवती ने बच्चे को अभ्यर्थी अपने पति को पकड़ाते और सड़क के बगल में विछाये चादर को समेटते हुए पूछा।
” पेपर तो बढ़िया भयल बिया, अब आगे देखा ” पति ने खामोशी से पत्नी को आगे चलने का इशारा करते हुए कहा।
” चली नीमा माई चहियन त असो आपके सफलता मिली, योगी जी नीमन से परीक्षा कराते बायन ” कहते अपने पति के पीछे चलने लगी।
पुलिस परीक्षा पूरे जोर शोर से बीएचयू सहित पूरे वाराणसी में चल रही थी। एक साथ परीक्षा छूटने के कारण सड़क पर भीड़ थोड़ी बढ़ गयी थी। मैं भी कार्यालय से निकल चुका था। और भीड़ के साथ चलने को बाध्य था। इसी दौरान मैं भी उस जोड़े की बातचीत में रूचि लेते हुआ थोड़ा तल्लीन हो गया। वे दोनों बच्चे को लिये पैदल ही गेट की ओर चले जा रहे थे।
मुझे लगा कि गेट पर जाकर कोई साधन पकड़ कर ये अपने गंतव्य को निकलेंगे। मैं भी तकरीबन साथ ही चल रहा था। पत्नी बोली ‘ अजी कहीं रुक के कुछ खा लेही, बिहाने से कुछ कायदे से खहिलीन नाही ” उसके हाव- भाव से लगा कि वह अपने साथ बच्चे को भी कुछ खिलाने की इच्छुक लग रही थी।
” चला पहिले गेट ले पहुंचा, भीड़ बहुत है, फिर वइजेह सोचल जाई ” पति ने कहते हुए अपनी पैदल रफ्तार बढ़ा दी। उसकी भार्या भी उसके साथ लगभग भागते हुए चल पा रही थी। चलते चलते वह बोली ” बॉडी त आप नीमन बनवले हई, बस नीमा माई रिटेनवा निकलवा देती त योगी बाबा के कृपा से आप वर्दी पहिन लेती।”
पति एक फीकी हंसी के साथ आगे चला जा रहा था।
अब मुझे भी उनकी बातचीत में रुचि होने लगी थी। इसी दौरान गेट भी आ गया। मैं भी गेट पर पहुंच कर उनकी प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर में भीड़ के साथ वे दोनों निकले। पत्नी एक गोलगप्पे वाले के पास रुक कर कुछ कहने लगी, शायद उसकी इच्छा कुछ खाने की हो रही थी, पर पति का आगे चलने का इशारा पाते ही वह एक आज्ञाकारी भारतीय नारी जो सदैव पति के कल्याण की कामना करते हुए उसकी अनुगामी बने रहना चाहती है, आगे बढ़ चली। आगे की घटना से परिचित होने का लोभसँवरण न कर सकने के कारण मैं भी क्रमशः उनका अनुसरण कर रहा था। उनके मध्य की बातचीत से वे गाजीपुर के किसी गाँव से थे और परीक्षा के उपरांत वही वापस जा रहे थे।
वे दोनों आगे बढ़े ही जा रहे थे, लगा अब कही रुक कर कुछ खायेंगे, तब रुकेंगे पर वे दोनों बढ़े ही जा रहे थे। मैं भाप गया कि नाश्ते का उनका प्रोग्राम कैंसिल हो गया था। अब लगा कि शायद वे कोई वाहन कर बस अड्डे की जल्दी में है।
जब मुख्य सड़क पार करने पर भी उन्होंने कोई वाहन नही लिया, और तेजी से आगे बढ़ते रहे, तब मैंने जिज्ञासावश पुनः पीछा किया तो देखा दोनों कालोनी के एक चाय की दुकान पर रुके। लगा चलो अब कम से कम चाय नाश्ता दोनों करेंगे। उनसे ज्यादा मेरे दिल को तसल्ली मिल रही थी। मैं भी वही चाय पीने के बहाने रुक गया और एक फीकी चाय का दुकानदार को आर्डर किया और पास के स्टूल पर बैठ उनकी बातों में रुचि लेने लगा।
पति ने जेब से एक दस का नोट निकाल दो रुपये वाले पांच पारले जी बिस्कुट लेकर पत्नी व बच्चे को पास के एक पेड़ के पास बने चबूतरे पर बैठने का इशारा किया, स्वयं एक पुरानी पानी की बोतल लेकर पास के हैंड पंप से पानी भर लाया। पत्नी ने अपने बैग से एक छोटा सा गिलास निकाला, बच्चे को पानी मे बिस्कुट बोर-बोर कर खिलाने लगी, बीच-बीच मे बचे छोटे टुकड़े को स्वयं खा रही थी। अब एक दो रुपये वाले परले जी कि कितनी औकात होती है, समझा जा सकता है, पति भी नीचे बैठ कर एक वही बिस्कुट का पैकेट खोल कर खाने लगा। खाने के बाद खींच कर पानी पिया और पुनः आगे चलने की तैयारी करते हुए पत्नी से कह रहा था, की ” थोड़ा तेज चलो जितना भाड़ा में यहाँ से बस अड्डे पहुँचेगे, उससे कम में हम लोग ट्रैन से गाँव पहुँच जायेगे। पत्नी ने भी सहर्ष सिर हिलाते हुए उसका अनुगमन किया।
अब मेरा भी उनके साथ आगे बढ़ने का रहा सहा धैर्य समाप्त हो चला था। हृदय चीत्कार कर मन क्रंदन कर उठा। वाह रे भारतीय नारी तेरे, त्याग, ममता, धैर्य करुणा व पतिव्रत की महिमा अपार है। आज भी एक भारतीय नारी अपने पति के सुख के अंदर अपने सर्वस्व सुख देखती है। पति के लिए वह कल भी अपना सर्वस्व न्योछवार करने को तैयार थी, आज भी है और कोई बड़ी बात नही कि इस सभ्य समाज के बहकावे में नही रही तो कल भी रहेगी। धन्य है तू, नमन है तुमको।

निर्मेष

नोट : सभ्य समाज के बहकावे का तात्पर्य जिस दम्भ के साथ हम अपने विकसित समाज की चर्चा करते रहते है , क्या उतने ही तेजी से रिश्ता का टूटना व छीजते परिवार के सरोकारों को अनदेखा नहीं कर रहे। फॅमिली कोर्ट में अनगिनत फाइलों का अम्बार चीख चीख कर कह रहा कि अपवादों को छोड़ कर हमारी प्राचीन सामाजिक व्यवस्था अनुपम थी। जहाँ पति पत्नी एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे और सही मायने में कंधे से कन्धा मिलकर चलते थे। आज के परिवेश में ये सम्बन्ध नाटकीय ज्यादा है वास्तविक कम , प्राचीन काल में समाज का सञ्चालन सुचारु रूप से होता था। सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे। विवाह विच्छेद की घटनाये लगभग शून्य थी। तो क्या कहे वह समाज सभ्य था कि आज का समाज ,,,

57 Views
Books from Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
View all

You may also like these posts

हे ! अम्बुज राज (कविता)
हे ! अम्बुज राज (कविता)
Indu Singh
23/96.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/96.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
42 °C
42 °C
शेखर सिंह
सत्य केवल उन लोगो के लिए कड़वा होता है
सत्य केवल उन लोगो के लिए कड़वा होता है
Ranjeet kumar patre
मार्गदर्शन होना भाग्य की बात है
मार्गदर्शन होना भाग्य की बात है
Harminder Kaur
*हुस्न से विदाई*
*हुस्न से विदाई*
Dushyant Kumar
शिव सुखकर शिव शोकहर, शिव सुंदर शिव सत्य।
शिव सुखकर शिव शोकहर, शिव सुंदर शिव सत्य।
डॉ.सीमा अग्रवाल
श्रंगार
श्रंगार
Vipin Jain
" कमाल "
Dr. Kishan tandon kranti
*
*"देश की आत्मा है हिंदी"*
Shashi kala vyas
*नहीं समस्या का हल कोई, किंचित आलौकिक निकलेगा (राधेश्यामी छं
*नहीं समस्या का हल कोई, किंचित आलौकिक निकलेगा (राधेश्यामी छं
Ravi Prakash
गलतियां हमारी ही हुआ करती थी जनाब
गलतियां हमारी ही हुआ करती थी जनाब
रुचि शर्मा
मधुशाला में लोग मदहोश नजर क्यों आते हैं
मधुशाला में लोग मदहोश नजर क्यों आते हैं
कवि दीपक बवेजा
दोहे
दोहे
seema sharma
वस्त्र की चिंता नहीं थी शस्त्र होना चाहिए था।
वस्त्र की चिंता नहीं थी शस्त्र होना चाहिए था।
Sanjay ' शून्य'
परिणाम से डरो नहीं
परिणाम से डरो नहीं
मिथलेश सिंह"मिलिंद"
कोरी स्लेट
कोरी स्लेट
sheema anmol
Bad in good
Bad in good
Bidyadhar Mantry
हाथ की लकीरें
हाथ की लकीरें
Mangilal 713
ये दिल तेरी चाहतों से भर गया है,
ये दिल तेरी चाहतों से भर गया है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
यमराज का आफर
यमराज का आफर
Sudhir srivastava
गीत.......✍️
गीत.......✍️
SZUBAIR KHAN KHAN
मानवीय मूल्य
मानवीय मूल्य
इंजी. संजय श्रीवास्तव
खुद को खुदा न समझा,
खुद को खुदा न समझा,
$úDhÁ MãÚ₹Yá
कब रात बीत जाती है
कब रात बीत जाती है
Madhuyanka Raj
पिटूनिया
पिटूनिया
अनिल मिश्र
क्या हमें ग़ुलामी पसंद है ?
क्या हमें ग़ुलामी पसंद है ?
CA Amit Kumar
प्रेम की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति
प्रेम की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति
पूर्वार्थ
मौहब्बत में किसी के गुलाब का इंतजार मत करना।
मौहब्बत में किसी के गुलाब का इंतजार मत करना।
Phool gufran
..
..
*प्रणय*
Loading...