पायल
पायल रुनझुन मद भरी ,बढ़ा रही मन- चाव ।
छेड़ अधर मुस्कान नव,सहलाती है घाव ।
सहलाती है घाव ,प्रणय सुरसरि-सी बहती ।
तोड़े मन-बैराग ,चपल चपला-सी हँसती ।।
सुमधुर रव उर घोल ,चित्त करती नित घायल ।
शोभा अति संचार ,बजे प्रतिपल पग- पायल ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी