पायल सा खनकता रहा
पायल सा मै खनकता ही रहा
अपनों से सदैव ठगता ही रहा
अबतक ठोकरें ही ठोकरें खाई
जिन्दगी में आगे बढता ही रहा
पूर्वा सुहानी सदा चलती रही
पछवाँ में सदा मैं घुटता ही रहा
गुलों से हैं गुलशन महकते रहे
गुल पंखुड़ी सा झड़ता ही रहा
लोग मिलते रहे यूँ बिछड़ते रहे
मैं स्थिर शिथिल देखता ही रहा
परिन्दे स्वछंद नभ में उड़ते रहे
अहेरी के अहेर फँसता ही रहा
मेघ बनते रहे और बरसते रहे
मैं बरसा नहीं गरजता ही रहा
प्रेम के खेल में सब जीत गए
ईश्के की बाजी हारता ही रहा
प्रेम संगीत से आनन्दित हुए
घूँघरू की तरह बजता ही रहा
पायल सा मैं खनकता ही रहा
अपनों से सदैव ठगता ही रहा
सुखविंद्र सिंह मनसीरत