पायल का यह टूटा घुँघरू
सुनना चाहें लोग खुशी से मेरे गम की कविता।
कैसे ढूँढूँ अपना हमदम उगी है तम की सविता।
तन्हाई की आग लगी है तार जले हैं मन के।
पायल का यह टूटा घुँघरू कैसे छन छन छनके।
आँसू के फूलों की माला गूँथ रहे हैं पल पल।
जाने कितने अश्क बहेंगे नयन हुए हैं निर्झर।
पल पल भीगी पलकों के तल तेरी राह बिछाए।
किसी बहाने तुझसे मिलन की कोई घड़ी तो आए।
जग वालों ने प्रीत की रीत की कैसी अलख जगाई।
अपना गम देकर के मुझको छोड़ चली परछाई।
सँभल गए हैं, बदल गए है, मीत मेरे जीवन के।
मीत मेरे जीवन के , गीत मेरे जीवन के।
पायल का यह टूटा घुँघरू कैसे छन छन छनके।
संजय नारायण