पाप
गाँव के बीच शिव मन्दिर में एक संन्यासी रहा करते थे। मंदिर के ठीक सामने ही एक वैश्या का मकान था।वैश्या के यहाँ रात−दिन लोग आते−जाते रहते थे। यह देखकर संन्यासी मन ही मन कुड़−कुड़ाया करता। एक दिन वह अपने को नहीं रोक सका और उस वैश्या को बुला भेजा। उसके आते ही फटकारते हुए कहा—
तुझे शर्म नहीं आती पापिन, दिन रात पाप करती रहती है। मरने पर तेरी क्या गति होगी?”संन्यासी की बात सुनकर वेश्या को बड़ा दुःख हुआ। वह मन ही मन पश्चाताप करती भगवान से प्रार्थना करती अपने पाप कर्मों के लिए क्षमा याचना करती।बेचारी कुछ जानती नहीं थी। बेबस उसे पेट के लिए वेश्यावृत्ति करनी पड़ती किन्तु दिन रात पश्चाताप और ईश्वर से क्षमा याचना करती रहती।उस संन्यासी ने यह हिसाब लगाने के लिए कि उसके यहाँ कितने लोग आते हैं एक−एक पत्थर गिनकर रखने शुरू कर दिये। जब कोई आता एक पत्थर उठाकर रख देता। इस प्रकार पत्थरों का बड़ा भारी ढेर लग गया तो संन्यासी ने एक दिन फिर उस वेश्या को बुलाया और कहा पापिन? देख तेरे पापों का ढेर? यमराज के यहाँ तेरी क्या गति होगी, अब तो पाप छोड़।”पत्थरों का ढेर देखकर अब तो वेश्या काँप गई और भगवान से क्षमा माँगते हुए रोने लगी। अपनी मुक्ति के लिए उसने वह पाप कर्म छोड़ दिया। कुछ जानती नहीं थी न किसी तरह से कमा सकती थी। कुछ दिनों में भूखी रहते हुए कष्ट झेलते हुए वह मर गई।उधर वह संन्यासी भी उसी समय मरा। यमदूत उस संन्यासी को लेने आये और वेश्या को विष्णु दूत। तब संन्यासी ने बिगड़कर कहा “तुम कैसे भूलते हो। जानते नहीं हो मुझे विष्णु दूत लेने आये हैं और इस पापिन को यमदूत। मैंने कितनी तपस्या की है भजन किया है, जानते नहीं हो।”यमदूत बोले “हम भूलते नहीं, सही है। वह वेश्या पापिन नहीं है पापी तुम हो। उसने तो अपने पाप का बोध होते ही पश्चाताप करके सच्चे हृदय से भगवान से क्षमा याचना करके अपने पाप धो डाले। अब वह मुक्ति की अधिकारिणी है और तुमने सारा जीवन दूसरे के पापों का हिसाब लगाने की पाप वृत्ति में, पाप भावना में जप तप छोड़ छाड़ दिए और पापों का अर्जन किया।भगवान के यहाँ मनुष्य की भावना के अनुसार न्याय होता है। स्वयं दोष दर्शन करना एवं दूसरों को उपदेश देना , यह पाप है ।