पाप बढ़ा वसुधा पर भीषण, हस्त कृपाण कटार धरो माँ।
पाप बढ़ा वसुधा पर भीषण, हस्त कृपाण कटार धरो माँ।
रक्त पिपासु कई महिषासुर, मार इन्हें भव त्रास हरो माँ।
पाप मिटा भव ताप हरो हर, पातक के हिय भक्ति भरो माँ।
शुम्भ निशुम्भ पले मन में, कर नाश सदा उर वास करो माँ।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (नादान)