पाप के छेदों की एम्बाडरी (रफु ) के लिए एक पुस्तक है। जीसमे
#आज_का_आभास
■ क्यों कहा- “आ बैल, मुझे मार…?”
【प्रणय प्रभात】
पाखंड-लोक पर कटाक्ष करती मेरी चार पंक्ति की एक पोस्ट पर आज एक “फेसबुकी फ्रेंड” ने आठ पंक्तियों का निरर्थक सा कॉमेंट दिया। जो ध्यान से पढ़ने के आग्रह के साथ (बिना उनका नाम लिखे) यहां अक्षरक्षः (Copied) प्रस्तुत कर रहा हूँ। पहले उसे पढ़िए:-
“पाप के छेदों की एम्बाडरी (रफु ) के लिए एक पुस्तक है। जीसमें क्रांतिकारी सामाजिक ,धार्मिक वीचार है ,राजनीतिक सिख है । गारन्टी है इसको पढ़ने के बाद किसी दोखे में नहीं पड़ोगे । सत्य जानने की खोज हमेशा करोगे ।
उस पुस्तक का नाम है स्वामी दयानंद जी द्वारा लिखित * सत्यार्थप्रकाश * अवश्य पढे़।।”
आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की प्रेरक कृति “सत्यार्थ प्रकाश” मैं तरुण अवस्था में पढ़ चुका हूँ। उसकी महत्ता और सर्वकालिक प्रासंगिकता पर किसी तरह का कोई सवाल नहीं। तथापि एक “सामयिक टिप्पणी” के “अकारण विषयांतर” के बेतुके प्रयास ने तात्कालिक रूप से क्षुब्ध किया। यह अलग बात है कि आभासी दुनिया के इस मित्र पर आदतन नाराज़गी जताने के बजाय मैंने अपने क्षोभ की आग पर हास्य-व्यंग्य की फुहार डालने का मन बनाया। इस त्वरित जवाब के साथ। ग़ौर से पढ़िए और लुत्फ़ लीजिए:-
“क्या कोई पुस्तक ऐसी भी है प्रभु जी, जो “छोटी-इ इमली वाली” और “बड़ी ई ईख वाली” का अंतर समझा सके? मुझ जैसे परम् अज्ञानी को।।”
हालांकि अगली टिप्पणी में महाशय ने अपनी स्वाभाविक सरलता का परिचय अपनी त्रुटि को सहज स्वीकारते हुए दिया। काश, वे समझ पाते कि एक सामयिक व संदर्भित विचार पर प्रचार थोपना कतई उचित नहीं। वो भी पोस्ट की विषय-वस्तु और लेखक के मर्म व मंतव्य तक पहुंचे बिना। सभी को यह समझना चाहिए कि विचार का विषयांतर न केवल विमर्श का विनाश करता है, वरन् औरों को भी इस तरह की ग़लती के लिए उत्प्रेरित करता है। जिसे मेरे जैसे लोग “वैचारिक संक्रमण” की संज्ञा देते हैं। जय राम जी की।।
◆संपादक◆
न्यूज़ & वयूज़
श्योपुर (मप्र) .