#पापी
🙏~ जगजगती की ~
🔥 #पापी 🔥
● जाने अनजाने में किए गए अपराध का दंड सत्ता द्वारा निर्धारित दंडसंहिता के अनुसार अपराधी को भुगतना पड़ता है। कुछ तिकड़मी लोग इससे बच भी निकलते हैं। लेकिन, जाने अथवा अनजाने में किए गए पापकर्मों का फल निश्चित रूप से भुगतना ही पड़ेगा। क्योंकि वहाँ लेखाजोखा रखने की प्रक्रिया स्वचालित है। इधर आपसे धर्म का हाथ छूटा उधर लिखा गया. . .यहाँ-वहाँ घरों में अस्पतालों में पापकर्मों का फल भोगते लोग आपको दिख जाएंगे जो केवल इसलिए जीवित कहलाते हैं कि तन में प्राण कहीं अटके पड़े हैं अथवा वैद्य डॉक्टर ने अभी उन्हें मृत घोषित नहीं किया। ●
बंधुवर, प्यारी वसुधा के कुटुंबीजन केवल दो पाँवों से चलने वाले हम मनुष्य ही नहीं हैं। मानवसमाज के बीच विचरने वाले चौपाए सरीसृप वनचर नभचर व जलचर प्राणी भी इस विशाल कुटुंब के सदस्य हैं। तभी तो मत्स्यावतार कच्छपावतार वराहावतार व गरुड़भगवानरूपी अंशावतार हुए।
और, इन सब जीवों अथवा माँ वसुधा की संतानों की सुरक्षा का दायित्व भगवान अथवा प्रकृति ने मनुष्यों को सौंप रखा है।
क्या हम अपने दायित्व का निर्वहन भलीभांति कर रहे हैं? आज इसी प्रश्न का उत्तर खोजते हैं।
समुद्र में नित्यप्रति बढ़ता जा रहा अगलनशील कचरा प्राणवायु को अवरुद्ध करता है। जिसके दुष्परिणामस्वरूप जलचर जीवों का जीवन संकट में है। इस कचरे में सर्वाधिक मात्रा प्लास्टिक की उस तीली की है जिसके दोनों छोर पर रुई लिपटी रहती है। अज्ञानतावश हम इससे अपने कानों की मैल हटाया करते हैं।
कानों की मैल गाढ़े पीले रंग की एक प्रकार की मोम है जो हमारे कानों के भीतर से ही स्रावित हुआ करती है। यह एक प्राकृतिक क्रिया है। यह मैल अथवा मोम हमारे कानों के पर्दे और कर्णनलिका की रक्षाकवच है। परंतु, यदि इसकी मात्रा अधिक हो जाए अथवा यह मोम कड़ा हो जाए तो कानों को अपूर्णीय क्षति होना भी संभव है। इसलिए कानों की सफाई होते रहनी चाहिए।
साधारणतया कानों की मैल अपने आप ही बाहर निकलती रहती है। लेकिन, यदि आपको ऐसा लगे कि कानों में मैल की मात्रा अधिक हो गई है तब मुंह बंद करके अंगूठे व तर्जनी अंगुली से दोनों नासिकाछिद्र को दबाकर भीतरी वायु को कानों के द्वार से बाहर की ओर धकेलें। ऐसा दो-तीन बार करें। बस।
यदि कानों की मैल में कड़ापन आ गया है तब सरसों का तेल किंचित गुनगुना करके एक कान में दो-तीन बूंद डालें। कुछ पल तक उसी करवट लेटे रहें। तदुपरांत उस कान को नीचे की ओर कर दें। तेल बाहर निकल जाएगा। तब रुई अथवा सूती वस्त्र से तेल पोंछ दें।
अब यही प्रक्रिया दूसरे कान में भी दुहराएं।
कान के भीतर किसी भी प्रकार की तीली आदि मत डालें। कानों का भीतरी भाग अति संवेदनशील है। किंचितमात्र असावधानी से हानि हो सकती है।
यदि कानों के भीतर बारबार खुजली हो रही हो तब भी गुनगुने तेल की कुछ बूंदें आपका कष्ट हरने को पर्याप्त हैं। इससे भी सुख न मिले तो तुरंत डॉक्टर अथवा वैद्य जी की शरण लें।
किंतु, कैसी भी सरल विरल विकल स्थिति हो कानों में प्लास्टिक की वो तीली मत फिराएं जिसके दोनों छोर पर रुई लिपटी रहती है। समुद्र में निरंतर बढ़ते जा रहे अगलनशील कचरे में जिसकी बहुलता है। क्योंकि ऐसा करने से आप अपने कुटुंबीजनों की हत्या के दोषी होंगे। और यह अक्षम्य अपराध ही नहीं वरन् पाप है।
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२