*पापी पेट के लिए *
शीर्षक : पापी पेट के लिए
लेखक : डॉ अरुण कुमार शास्त्री – पूर्व निदेशक – आयुष – दिल्ली
शैक्षणिय व्यवसाय का बड़ा अपूर्व अर्थ ।
और करें तो स्वर्ण है , शिक्षक करे तो व्यर्थ ।
शैक्षणिय व्यवसाय से गुणवत्ता बढ़ जाती है ।
तकनीकी स्वरूप से विकास में तीव्र गति आ जाती है ।
लेना देना धर्म सदा से, जब से धरती का हुआ सृजन ।
वनस्पति आई, जीव फिर आये, तब मानव का हुआ आगमन ।
पेट की भूख और जरूरत ने, शैक्षणिय व्यवसाय दिया ।
हुई क्षुधा बलवती तो यही शैक्षणिक व्यवसाय किया ।
कालांतर में, वर्तमान का उदाहरण न लग पायेगा ।
शिक्षक यदि व्यवसाय न करें तो, भूखा ही मर जाएगा ।
शिक्षा देना, कर्म क्षेत्र है, तो व्यवसाय भी विधि निहित ।
पारिवारिक कर्तव्यों का निर्वहन भी होता अति शुभित ।
पेट की भूख और जरूरत ने, शैक्षणिय व्यवसाय दिया ।
हुई क्षुधा बलवती तो यही शैक्षणिक व्यवसाय किया ।
आर्य सभ्यता के आने से गुरुकुल का निर्माण हुआ ।
रुपया, पैसा नहीं मिला तो भिक्षा से था काम चला ।
शैक्षणिय व्यवसाय का बड़ा अपूर्व अर्थ ।
और करें तो स्वर्ण है , शिक्षक करे तो व्यर्थ ।
स्तर जीवन का डोल रहा अंधी दौड़ में दौड़ रहा ।
इंसानी आचारण छोड़ कर नरभक्षी है बना हुआ ।
मानवता को त्याग कर , दानव सा व्यवहार कर ।
भ्रष्ट आचरण धारण करके अंधे कुएं में भटक रहा ।
शैक्षणिय व्यवसाय का बड़ा अपूर्व अर्थ ।
और करें तो स्वर्ण है , शिक्षक करे तो व्यर्थ ।