पापा
पापा,,
शब्द नहीं.. भावनाएं हैं।
बच्चे से जुड़ी पिता की सारी संवेदनाएं हैं।।
पिता हैं क्या,,
ये एक पिता ही समझ सकता हैं।
पिता के मर्म को जानने को,,
पिता बनना पड़ता हैं।।
पिता हो ,, तो हर मकाम हैं,,
उसका होना ही प्रकाश हैं।
पिता सीढ़ी हैं,, पिता कंधा हैं,,
पिता का होता मिज़ाज़ गेहरा हैं।।
फ़टे जूतों को ख़ुद के लिये सिल,,
वो बूट्स दिलवाता हैं।
सबकी हँसी बरकरार रखने को,,,
वो आंधियो से टकराता हैं।।
माँ पर लिखते ग्रन्थ गेहरे,,
आख़िर पिता पर भी तो कुछ बनता हैं।
पिता पालता हैं पसीने से,,
अगर माँ का रक्त लगता हैं।।
पिता का होना जीवन,,
पिता हर मर्ज़ का इलाज़ रखता हैं।।
और पिता हैं तो सारा बाज़ार अपना,,
उसके बिना सब अधूरा रहता हैं।
पिता हैं तो फ़तेह हो सारा संसार अपना,,
वरना सोना भी माटी सा लगता हैं।।
वरना सोना भी माटी सा लगता हैं।।
.
.
सेजल गोस्वामी
नई दिल्ली