“पाने की तलब है”
पाने की तलब है, न मुकद्दर में यकीं है
मेरे कदम वहीं है ,जहाँ मेरी जमीं है।
आँखों मे तिरे आज भी हया की नमीं है
लगता है मुझे मेरी ही वफ़ा मे कमी है ।
तु पहले तो हसीं थी, मग़र अबके नशी है
जुल्फों की ओंट में तेरी चंदा सी हँसी है।
साहिल आँखों में भोली सी सूरत बसी है
बस इसलिए ही;हमें तो ये दुनिया जंची है।
S.K. soni अग्निवृष्टि?