पानी यौवन मूल
पानी जीवन दायिनी, धरती रूप हजार।
मोती, मानुष या दवा, बिन पानी बेकार।।
पानी जस यौवन यहाँ,पानी यौवन मूल।
पानी यौवन छीनती, पानी है इक शूल।।
पानी संचय जो करे,बुझती उसकी प्यास।
पानी ही पानी जहाँ, कर दे सत्यानाश।।
पानी निर्मल हो भले, करती लौह कठोर।
धन पानी ऐसा कहाँ, चूरा सके न चोर।।
निज पानी को राखिये, पानी तो है शान।
पानी बिन क्या है “जटा”,पानी प्राण समान।।
✍️जटाशंकर”जटा”