पानी से व्याकुल
पानी से व्याकुल हुआ, सकल सृष्टि संसार।
सूख रहे खलिहान सब, संकट विषम अपार।
संकट विषम अपार, बचाएँ जीवन कैसे।
नही बचेंगे प्राण, रहा जो मौसम ऐसे।
कह कविराय अदम्य, सुनो! हे औढरदानी।
निष्ठुर हो गए मेघ, जरा बरषा दो पानी।
अभिनव मिश्र अदम्य