पानी में अक्स
“पानी में अक्स”
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पानी में अक्स
ये किसका हैे ?
मंथन करता
‘बाज’ है ||
पंख तो इसके
मेरे जैसे !
पर !
भरता क्यों ना ?
परवाज है ||
जब मैं इसको
आँख दिखाऊँ !
मुझको आँखें
दिखलाता है |
मेरे पैर से
पैर मिलाकर !
वह पैरों को
सहलाता है ||
जब भी कोई
मछली पकड़ूँ !
वो देखा-देखी
करता है ||
बैठ स्तब्ध-सा
देख रहा है !
क्यों उड़ान ना ?
भरता है ||
चमक रही हैं
उसकी आँखें !
प्रज्वलित से
“दीप”- सी
चोंच है उसकी
इतनी सुन्दर !
लगती है वो |
सीप- सी ||
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डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”
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