पानी भी होता पानी पानी
सूखी गर्भ धरा अब ख़त्म होती रवानी ।
पहुँच रसातल पानी-पानी होता पानी ।
मोल नही रहा अब कोई रिश्तों का ,
दुनियाँ भी दुनियाँ को लगती बेगानी ।
रीत रही हैं सागर सी नदियाँ अब ,
रीत रही है रिश्तों की बात पुरानी ।
बहती थी जो कल कल कल तक ,
मरु भूमि सी उसकी आज कहानी ।
मोल नही रिश्तों का जिस दुनियाँ में ,
पानी की बात लगे अब बेमानी ,
फ़िक्र कहाँ अब आते कल की ,
शर्म हया भी होती पानी पानी ।
“निश्चल” ख़त्म हुई आज रवानी ,
पानी भी होता अब पानी पानी ।
…… विवेक दुबे”निश्चल”@…
रायसेन (म.प्र.)
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Blog post 23/3/18