पानी बन जाती
हर मुसीबत से मैं हर वक्त लड़ती हूं,
कुछ नहीं पता जिंदगी का,
फिर भी जीती हूं ।
क्यों नहीं मैं अपना बहाव ,
खुद ही बना पाती।
काश में पानी की लहर बन जाती है ।
बचपन से मैं हर जिम्मेदारी,
निभाती आई हूं।
अपने पिता का घर खुशियों,
से सजाती आई हूं ।
अपने पिता के हर दुख ,
को मैं अपनी लहरों में समा लाती ।
काश में पानी की लहर बन जाती।
दुनिया की तू तू, मैं मैं की हवा,
मुझे ना रोक पाती।
मेरी और उठने वाली उंगलियों ,
की आग को मैं शांत करके,
अपना आशियाना बनाती।
काश में पानी की लहर बन जाती।
रोक न पाती मुझे कोई भी बेबसी ,
जब मैं अपने आक्रोश में बहती।
सम्मान मिलता उस वक्त मुझे,
जब मैं गंगा की धार बन जाती।
काश में पानी की लहर बन जाती।
पत्नी बन हर ताने को उसी वक्त,
अपनी लहरों में तोड़ देती।
मां बन अपने बच्चे की हर खुशियों ,
को मैं किनारे तक छोड़ देती ।
बन सरस्वती में अपनी लहर को,
हर घर में मोड आती ।
काश में पानी की एक लहर बन जाती ।
बन गंगा में सब के पापों को हर,
कर ले जाकर( शिव )को अर्पित,
करती।
इस प्रकार में गंगाजल के रूप में,
हर घर की शोभा बनती।
काश में पानी की एक लहर बन जाती।