पानी का संकट
-पानी का संकट
पानी- पानी शोर मचा है,मंहगा हुआ अब पानी,
वृक्ष काटें,धरती भवन बने मानव यह तेरी मेहरबानी।
ताल,सरोवर और सूखें बांध मांगे वहीं हमसे पानी,
बहती नदियां थमी कारण इसमें मानव की बेईमानी।
तापमान में अग्नि बरसे, कैसी मची आफत आसमानी।
वीरान हैंडपंप,सूखें कूप,हर जुबां पर बस पानी-पानी,
नल पाईप सूखें पड़ें ,केवल जल टैंकरों की आवागामी।
पानी संकट से त्रस्त रोड जाम हो रोज यही कहानी,
सूख गयी धरा सारी अब कुछ कहां आनी-जानी!!
जीव जंतु प्यासे तड़पे अभाववश जग से करें रवानी,
बुद्धि से परिपक्व मानुष कहां गई अब वही बुद्धिमानी।
सम्भल ले रे अभी भी मानव !!बचा के चल पानी।
वृक्ष लगाएं, प्रदुषण न फैलाएं कि नभ से बरसे पानी।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान