पानी का दर्द
आज पानी रो रही है
आज पानी रो रही है
सिसक सिसक दम तोड़ रही है
और हमसे पूँछ रही हैं।
सोचो कैसा लगता है
जब अपने करे अपनों पर प्रहार
अपनों से प्रताड़ित होकर
मैं हो गई हूँ आज लाचार।
मैंने दिया था तुमको
निर्मल – शुद्ध जल पीने के लिए
तुमने अपने मतलब के लिए
मुझको मैला कर दिया है।
मेरे चाँदी जैसे रंग को
तुमने काला कर दिया है,
अपने स्वार्थ में आकर तुमने
मेरा ही दम घोट दिया है।
तुमने अपने स्वार्थ लिए
मेरा मान-मर्दन किया है,
तरह- तरह की गंदगी मुझ में डाल
मेरा तिरस्कार किया है।
मेरे अमृत जैसे पानी में
तुमने कई तरह के
ज़हर को घोल दिया है
और तुमने अमृत से अब
मुझको विष बना दिया हैं।
मेरा पानी गुणों का खान था,
जीवन के लिए यह वरदान था,
इसको पीने से होती थी
तेरे जीवन की लम्बी डोर।
पर तुमने इसमें गंदगी डालकर
मेरे गुणों को कम कर दिया
और इसके वरदान होने पर
तुमने प्रश्न खरा कर दिया ।
इसलिए मैं कह रही हूँ
मेरे पानी को जाया न करो,
और मेरे बुँद- बुँद की कीमत
तुम सबको समझाया करो।
मैं हूँ एक अनमोल रत्न
एक बार जो खो गई
दूबारा ढूँढने पर भी
इस जग मे कहीं नहीं मिलूँगी।
मेरा मोल अब तो समझ लो
ऐ जग के तुम प्राणी
और व्यर्थ में न बहाओ
मेरा निर्मल सा पानी।
आज भी ऐ मूर्ख प्राणी
तेरे लिए सोच रही हूँ,
इसलिए तुमको बार – बार
मैं आकर समझा रही हूँ।
मैं जब नही रहूंगी इस धरती पर
तो इस जग का क्या होगा
पेड़-पौधे, पशु-पक्षी
और तेरा भविष्य तुमको कोसेगा।
मैं फिर भविष्य से
कैसे मिल पाऊँगी
और कैसे अपने पानी को
फिर निर्मल बताऊंगी।
मैं कैसे भविष्य को यह बताऊँगी
यह सब तेरे इतिहास का किया धरा हैं
इसलिए अब तुम सम्भल जाओ
और भविष्य के लिए मुझे बचाओं।
तुम भविष्य के आँखों से
कैसे अपनी आँख मिला पाओगे
और कैसे उसके प्रश्नो का
तुम उत्तर दे पाओगे।
मै अगर न बच पाई तो
तुम कहाँ बच पाओगे
मेरे संग – संग इस दुनिया से
तुम भी तो चले जाओगे।
– अनामिका