पाती संग – संग उड़ आने दो
खोल दिए सारे वातायन
खोल दिए हैं हृदय के द्वार
पाती संग – संग उड़ आने दो
सहज सरल औ निश्छल प्यार ।
सुख सपनों की रखवाली में
हमने कितने दिवस गुजारे
नेह तंतु न टूटे कोई
विश्वासों से रखा संवारे
जैसे हिय से हिय मिलते हैं
वैसे ही मिलते उद्गार
पाती संग – संग उड़ आने दो
सहज सरल औ निश्छल प्यार ।
तुम जब भी पाती लिखती हो
अक्षर – अक्षर में दिखती हो
बार – बार फिर पढ़ना उसको
प्रेम भाव से लिखा था जिसको
जैसे रूप तुम्हारा उज्ज्वल
वैसे शब्दों का श्रृंगार
पाती संग – संग उड़ आने दो
सहज सरल औ निश्छल प्यार ।
तुम मयंक , तुम चन्द्र – हास हो
अमल मनोहर अचल आस हो
साथ कभी भी छूटे न ये
आस कभी भी टूटे न ये
विश्वासों से सजा रहे ये
अनुपम सुन्दर सुख संसार
पाती संग – संग उड़ आने दो
सहज सरल औ निश्छल प्यार ।
अशोक सोनी
भिलाई ।