” पाती जो है प्रीत की “
गीत
कागज कहे कलम से लिख दो ,
पाती जो है प्रीत की !!
कहा सुना जो बचा शेष है ,
भेद वही है खोलना !
शब्द शब्द में वह कह डालें ,
जो स्याही से बोलना !
रात दिवस थिरके है तन मन ,
धुन अधरों पर गीत की !!
अधर अगर , खामोश रहे तो ,
नज़रें कुछ हैं बोलती !
जो संवाद मूक रहता है ,
उसका रस है घोलती !
दिल में रची बसी रहती जो ,
मुस्कानें हैं मीत की !!
खूब रचे ताने बाने हैं ,
संबंधों को जोड़ते !
राह बने जो बाधा अपने ,
उन मिथकों को तोड़ते !
चुनी डगर साहस से हमने ,
उम्मीदें हैं जीत की !!
स्वरचित /रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )