पाठ कविता रुबाई kaweeshwar
पाठ कविता रुबाई
कविता कन्यका
क्योंकि प्रकृति की समस्याओं की कुंजी दुःख है
जिस कवि ने इसका अनुभव किया है उसके लिए यह आसान होगा
कविता कौशलम् कलम चलाकर की जाती है
जीवन का विषय रोचक है
ये आंखों के जज्बातों का सिलसिला है.
अवधारणाएँ विचार तरंगों का एक पाठ खेल हैं
प्रत्येक क्रिया का संगम मन को साधने के लिए एक पहेली है
कनुलान की भावपूर्ण फिल्म कृतियों की श्रृंखला
कविजन काव्य कन्यका रूप सोयगम्मुला की अपुरूपा चित्रकेली
वही है और वही है पाठकों के मन का अम्बर।
होठ नवजात भावनाओं से भरे हैं
शरीर का आकार दृष्टिगोचर होता है तथा नये आसन संतुलित होते हैं
लिलागा अगुपिंकुनु शिल्पा कला कन्या नृत्य श्रवण बंध
कलुगुनु गतवैभव जीवन द्वारा चित्रित चैत्र वर्ण कदंबम
रस भाव गीति कई मायनों में सुंदर है…
आप काव्यात्मक युवती हैं!
कवीश्वर *******
क। जयन्त कुमार
राजेंद्रनगर.