पागल!!
सुना है, पागलो की बातें,
समझ में ही नही आता है।
जानता हुँ, नासमझ को ही,
यहाँ पागल कहा जाता है।।
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सोचो समझदार कौंन,
जिसे पागल कहा जाता।
या पागल है शख्स वो,
जिसे समझ नही आता।।
-:-
समझदारों के लिए तो,
हम समझदार थे बहोत।
पर उनकी क्या कहें भला,
जिन्हें पागल नज़र आते है।।
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जिसने हर खुंशी अपनी,
वफ़ा के नाम कर दिया।
जानने वाले नाम उसका,
जमाने मे पागल धर दिया।।
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सोच के पटल के,
गर्द कहने के लिए।
पागलपंती भी जरूरी,
दर्द सहने के लिए।।
-:-
एक पागल के शेर पे,
वो दाद दिए इस कदर।
देखने वाले भी उसके,
पागलपन पे दंग हो गए।।
-:-
कराह उठता था दर्द से,
जो रातो में वो सोते सोते।
लोग कहते, क्यों चीखता,
आया कहाँ से, पागल है ये।।
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इस पागल दुनियां की,
परवाह करते-करते।
वो शेख पागल हो गए,
दुनियां बदलते-बदलते।।
-:-
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०२/१२/२०१९ )