पागल है
ग़ज़ल
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दिल कितना पागल है
रहता बस घायल है
आसार नहीं कुछ फिर
काला क्यों बादल है
उसको देखा जब से
लगता वह रायल है
आटा अब खत्म हुआ
घर में बस चावल है
यादों का उसके यूँ
बजता अब साँकल है
आकाश में उड़ता था
धरती पर घायल है
पीने को जी चाहे
सुन्दर यह बाटल है
अब हर कोई कितना
पैसे पे पागल है
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी
4/7/2022