पागल भी हो सकता था
हँसते तो मन बेकल भी हो सकता था
ख्वाबों से इक दलदल भी हो सकता था
तुमने तो की हँसी मगर क्या मालूम है
सदमें से वो पागल भी हो सकता था
सह ना पाया जो तेरी खामोशी को
बातों से वो घायल भी हो सकता था
थोड़ा ही पर प्यार मोहब्बत देते तो
वो आँखों का काजल भी हो सकता था
रोते गर जाकर के किसी शिवालय में
आँखों में गंगाजल भी हो सकता था
तुमने जिसे समझकर घुँघरू तुमने तोड़ा है
गलकर के वो पायल भी हो सकता था
आए यूकेलिप्टस जहाँ लगाकर तुम
यार वहाँ पर पीपल भी हो सकता था
हर मौके पर बस दो पेड़ लगाते तो
आसमान में बादल भी हो सकता था
घर की दहलीजें ना गर लाँघी होती
सर पर माँ का आँचल भी हो सकता था