पागल प्रेम
नमन मंच
विसय पागल प्रेम
विधा मुक्तक
दिनांक 15:6:2024
पगली आज तुझे किस बात का गुमान है।
मन हमारा आज खाली है उड़ने को ना विमान है।
आया आज मैं तुमसे करने दिल की बात
देख लिया हमें तुम्हारें बाप ने मार दी पीठ पर लात
अरे! खामोश रहता मै सह लेता तेरे गम को
पर दुख होता है देखकर मुझे, मिटाया कैसे तेरे दामन को
पश्चाताप के आंसुओ में मेरा मन धुमिल हुआ
दाग लगा दामन पर ना जाने क्यो अमित हुआ
कोहराम मन में तेरे प्यार का, आज मैं सम्भाल रहा
वर्जित देख मन के फुलाव को आज मैं उबाल रहा
मन तेरा इतना पावन, मानो गंगा का हो सावन
देख रहा मैं आंखो को बन्द कर एहसास तेरा
आज हुआ खुशी का प्राँगन
तेरे आंगन पर रखा दाग आज ना मुझे कबुल होगा
विनम्रता से ही आज मागूंगा तेरा हाथ नहीं तो
प्रेम प्रांगण पर मेरा ही समुल होगा
ब. भरत कुमार सोलंकी