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6 May 2024 · 1 min read

पागल।। गीत

आजा पागल! हम तुम पागल, मिलकर पागल-पागल खेलें
जब जी चाहे, जो जी चाहे, जैसे चाहे, वैसे कर लें।

कुछ भी अपना/गैर न समझें,
दुनियावी कानून भुला दें
जिस पल जो अपना लग जाए,
उस पल उससे प्यार जता दें

जो अपने जैसा लग जाए, उस को ही बाहों में भर लें।
आजा पागल! हम तुम पागल, मिलकर पागल पागल खेंलें

बिन सोचे समझे ही कह दें,
जब जिससे जो भी हो कहना।
कहना-सुनना भाड़ में जाए,
बस अपनी धुन में हो रहना।

जब जी चाहे हँसना, हँस लें, जब जी चाहे रोना, रो लें
आजा पागल! हम तुम पागल, मिलकर पागल-पागल खेंलें।

ये हमको मालूम हि न हो,
खर्चा और कमाना क्या है
भूल जाए हम किसी रोज ये
क्या घर बार, ठिकाना क्या है

नाम वाम कुछ याद न रक्खें, जहाँ साँझ हो, वहीं बसर लें।
आजा पागल! हम तुम पागल, मिलकर पागल-पागल खेंलें

इन सब में इस तरह मगन हों,
मरना भी है याद न आए
स्वर्ग-नर्क या धर्म-कर्म का
किसी तरह का ज्ञान न आए।

छूट रहा क्या भूलभाल सब, दुनिया से चुप-चाप निकल लें।
आजा पागल! हम तुम पागल, मिलकर पागल पागल खेंलें।

© शिवा अवस्थी

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