*पागलपन है चाकू-छुरियाँ, दंगा और फसाद( हिंदी गजल/गीतिका)*
पागलपन है चाकू-छुरियाँ, दंगा और फसाद( हिंदी गजल/गीतिका)
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(1)
पागलपन है चाकू-छुरियाँ, दंगा और फसाद
सबसे घातक मजहब की, कट्टरता का उन्माद
.2
वहशीपन की आँधी चलती, भीतर ही भीतर है
सड़कों पर-नालों में लाशें, मिलतीं उसके बाद
3
अरे ! आदमी था वह भी, जिसको चाकू से गोदा
मजहब का जब नशा चढ़ा तो, रहता कब कुछ याद
4
वैसे तो चाकू दोषी है, जिससे लोग मरे हैं
पर उकसाया किसने सोचो, किसका पानी- खाद
5
जले हुए घर और दुकानें , शव हैं निर्दोषों के
दंगे का परिणाम यही, जन हो जाते बर्बाद
6
दंगाई से डरना कैसा , क्या इनकी औकात
सौ में दो या तीन समझ लो, बस इनकी तादाद
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रचयिता : रविप्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451