पाखंड क्यों ( श्राद्ध – तर्पण विशेष )
जीतेजी तो न किया कभी ,
माता और पिता का सम्मान ।
बात बात पर करते थे तिरस्कार ,
और दोस्तों के बीच अपमान ।
उनकी विचारों और बातों से,
होती थी तुम्हें बड़ी नफरत।
उनके साधारण खर्चे और ,
दवा दारू लगते थे आफत ।
उनकी आदतों और खाने के,
शौक का करते थे उपहास ।
ताने देते कभी व्यंग्य करते ,
निंदा करते उनके आस पास ।
आज यह पाखंड क्यों ,
इतना स्वादिष्ट भोजन ,
उनकी पसंद बताकर ,
क्यों बना रहे हो आज के दिन?
क्यों आज ही के दिन ,
रो रो कर हो रहे हो हलकान,
दुनिया के सामने दिखावा,
कर बन रहे हो नेक संतान।
जीतेजी तो पानी भी न पूछा ,
और कौवों को पितरों का दूत ,
बनाकर खिला रहे हो पकवान।
तुम हो पक्के धृत ।
ऐसा बिना श्रद्धा के किया गया,
श्राद्ध क्या फल देता होगा तुमको ।
जीतेजी जिन्हे अतृप्त रखा ,
वो भला क्या दुआ देंगे तुमको ।
मगर वो तो ठहरे माता पिता ,
जन्म दिया तुमको फिर भी आशीष देंगे ।
मरने के बाद भी बेचारे तुमको ,
आसमान से दुआओं की वर्षा करेंगे ।
और अब तुम अपनी खैर मनाओ ,
तुम्हारे साथ क्या होने वाला है ?
जो तुमने अपने माता पिता के साथ किया,
वही अब तुम्हारे साथ होने वाला है।
तुम्हारी संतान भी तुम्हें जीतेजी ,
आदर और सत्कार नहीं देने वाली ।
और मरने के बाद श्राद्ध का पाखंड करेगी ,
तुम्हें मुक्ति फिर भी नहीं मिलने वाली ।
आखिर यह पाखंड कब तक ,
यूं ही चलता रहेगा निरंतर ।
ऐसे पाखंड का कोई लाभ नहीं,
उचित है यही की जीतेजी मां बाप का ,
आदर सम्मान करो ।
तत्पश्चात ही श्राद्ध का है कोई मूल्य ,
माता पिता और वृद्ध जनों से ,
सच्चे दिल से निकली आशिषों और ,
दुआएं प्राप्त करो।
उनके द्वारा दिए गए जीवन का यही ,
यथोचित मूल्य है।