पाखंड का खेल
पाखंड का खेल
सुन लो भाईयों, देखो बाबा क्या-क्या बता रहे हैं,
नए-नए विचारों में, वेदों को बदल रहे हैं।
चार-चार बाग हैं, पर फल सब बेमतलब,
शिव जी की बातें भी, बस बन गई हैं एक फंदा।
हर कोई कहता, अपने हिसाब से धर्म का सार,
लगता है जैसे, सबने लिखा नया वेद, नया ग्रंथ, नया उपहार।
कल्पनाओं में खोए ये, कहानियाँ बनाते रोज़ नई,
पर असल में सब कुछ है, बस एक भ्रम, एक मायाजाल सही।
वेद-पुराण जब खुद में नहीं हैं एकमत,
तो कैसे मानें इनकी बातें, ये तो है मात्र कल्पित।
कहते हैं मठ बिगड़ते हैं जब साधु हो जाएं अधिक,
बस यही पाखंड की टोली, चला रही है अपना खेल निःशब्द।
धर्म के नाम पर ये व्यापार का धंधा,
भगवान के ग्रंथों में बस ढूँढते अपने लिए कंधा।
सनातन के नाम पर पाखंड की गैंग,
सच्चाई खो गई है, बस बची है ये रंगबिरंगी जंग।